Friday, October 14, 2011

एक जगह...

एक खुले रोड़ के बीच तैयार किया हुआ चबुतरा।...
लोग आपने कदमो की छाप उस पर छोड़ते हुये चलते कोई अपने दोस्तो के हाथो में हाथ डाले एक छलांग लगाते हुये उस पर चढ़ता और निकल जाता। कोई अपनी ही सोच में चलता हुआ गर्म तपते हुये इस चौतरे के उपर से अपनी सोच मे आस्क्रिम खाता निकल जाता। बच्चे अपनी अलग अलग कलाबाजियां करते हुये उस पर से निकल जाते। जाड़ी और कार भी इसी चौतरे के आस पास पार्क कि जाती। वही इस चबुतरे के पास एक मोटर मकेनिक की दुकान हैं जहां लोगो की आवाज़ो से ज्यादा आवाज़े मुझे उनके औजारो और गाडियो की रही हैं।

ये दक्षिण पुरी का एक आम चबुतरे हैं जहां पास की दुकान पर स्कुटर या कुछ और चीज़ ठीक करवाने आया शख्स गर्मियो में इसकी तपीश महसुस करने वाला शख्स भी यहां एक पल बैठ अराम फरमाने कि सोचता हैं। जहां एक पल कोई आराम से बैठकर सामने लगी दुकान से ली हुई चाय के प्याले का आन्नद ले सकता हैं। ये आम सा साधारण सा चबुतरा हैं जहां जाने कितने ही लोगो के कदमो की छाप इस पर मौजुद हैं जो उनके चहलकदमो के यहां पड़ने का आगाज़ कराती हैं। और एक हल्का सा हवा का झोका धुल के कुछ टुकड़ो के साथ इन कदमो की पहचान को अपने में दबा लेते हैं।

कबाडी की दुकान के सामने।...
इस जगह पर बैठे बैठे कई चेहरे मेरी आँखो के सामने से गुजर गए। माफ किजिये इसको सिर्फ और सिर्फ एक जगह कह देना मुनासिफ नही होगा शायद। ये तो एक महकमा है जहाँ लोगो का जमावड़ा समय के बदलाव के साथ अपनी अलग-अलग पहचान बनाने में कायम रहता हैं। किसी समय यहाँ लगे बैन्चो पर लोग आकर ताश के पत्ते बिखेर देते हैं तो ये जगह उस समय के लिये परिवर्तन में आकर अपनी एक अलग पहचान बना लेती हैं। और जुआरियो के अड्डे के नाम से जानी जाती हैं। गर्मी मे धुप से बचने के लिये जब यहाँ लगे पेड़ की छाव और तिरपाल से मिलने वाली हल्की राहत को ठन्डी हवा को महसुस करते हुये कोई आराम से बैठ जाता हैं तो लोग इसे सकुन मिलने वाली जगह के नाम से जानते हैं। यहाँ लगा शहतूत का पेड़ हवा के साथ अपने शहतूत जमीन पर गिराता हैं तो बच्चे इन्हे उठाने की होड में जाते हैं।

लोग अपना समय बिताने में यहाँ किसी बोरियत का एहसास नही करते शायद क्योकि ये रास्ता हमेशा आनेजाने वाले लोगो से हमेशा भरा जो रहता हैं। इस जगह में कोई ठहराव बनाते हुये भी इस रास्ते पर चलने वाले लोग अपने आप इस महकमे से जुड़ाव बना लेते हैं। और यहां बैठे हुये शख्स को अकेलेपन और बोरियत का एहसास नही कराने देते। रास्ते में निकलते कुछ शख्सो में से एक दो शख्स यहां बैठने वाले उस शख्स से दुआ सलाम करते हुये निकलते हैं तो जान पहचान का सिलसिला भी बठने लगता हैं। और निगाहे भी आने जाने वाले शख्सो को पहचानने लगती हैं। और यहां से गुजरने वाले हर शख्स को यहाँ बैठने का न्यौता देती। आवाज़ो का सिलसिला भी महकमे को चहकाये रखने में कामयाब दिखाई पड़ता।

आने-जाने वाले लोगो के साथ ठीया और रेडी वाले साईकिल या रेड्डियो पर अपने सामान को बाहर कि तपीश में बैचने वाले लोग भी यहां कुछ समय रूककर अपने सामान को बैचते और राहत महसुस करते। लोगो के यहां आकर शामिल होने का अपना अपना अन्दाज़ इस महकमे को बदलते रहने में कायम हैं। कोई अपने दोस्त को इस जगह बैठा देख आकर उसके साथ बैठ जाता तो कोई हाथो में बिड़ी का बन्डल लिये और माचिस से एक बिडी को सुलगाते हुये यहां किसी एक बैठक में शरिक हो जाता। कोई बातो से बाते मिलाता हुआ किसी अन्जान शख्स की किसी किसी बात पर बहस करता हुआ महकमे में शामिल हो जाता। कोई यहां अपनी गाडियो को खड़ी करके चला जाता तो कही लोग धुप में आराम फरमाने जाते।

दोस्तो की आपसी बातो के लिये भी एक जगह रखता ये महकमा। अन्जान लोगो को भी एक स्वांद में जोड़ने की खासियत लिये एक जगह जो कई ऐसे लोगो को अपस में जोड़े रखने के लिये कायम हैं। जो आपस में अन्जान हैं। ये महकमा एक एसी जगह हैं जहां बस्ती का हर एक शख्स यहां अपनी भूमिका निभाने जाता हैं। इस महकमे के बगल में बनी एक छोटी सी खोखे नुमा दुकान भी इस जगह से अपने एक अनोखे स्वांद में शामि रहती हैं। पुरे दिन तो ये खोखा शान्ति बनाये रखता हैं इस जगह के लिये मगर शाम को शान्ति टुटने पर और दुकान के खुलने पर शान्ति तोड़ इस जगह को अपनी दुकान से मिलने वाली धीमी रोशनी से जगमगा देता हैं।