Monday, December 24, 2012

सनसनी...



  यह शहर की सनसनी बन चुकी है, डर लगता है की कहीं ये सिर्फ और सिर्फ पब्लिसिटी स्टंड बनकर ही न रह जाए क्योंकि ये कोई पब्लिसिटी का रूप नहीं है, जहाँ कुछ लोग इसकी आड़ में अपनी पब्लिसिटी का जरिया तालाशे, ये तो किसी को आत्मा को झिन्जोड़ देने वाला वो वाक्य है जो अब लोगो से सावल करना चाहता है | ये वो सावल है जो हम अक्सर लडकियो से लडकियों के लिए किया करते हुए अपने आपको धीरज दे देते है – “कहाँ जा रही है?, टाइम से लौट आना, अकेले मत जाना, छोटे कपडे मत पहनो, फोन पर ज्यादा बाते मत करो...” पर इन सवालों की गुंजाइश अब कहा तक बची है?, क्या हम सिंफ इन चंद सावालो के छाव का आसरा लिए शहर में अभी भी अपने आपको और अपने परिवार को सुरक्षित महसूस कर पाएंगे??? अखबार के पन्ने पर पड़ा था किसी ने कहा था की ये घिनोना वाक्य किसी को मौत देने से कम नहीं है, इस दर्दनाक वाक्य से मिले शारीर के घाव तो भर जायेंगे पर उन घावों का क्या जो ताउम्र के लिए छोड दिए गए है, ये ठीक किसी को मौत देने के सामान ही है, बिलकुल सही कहा है ये बिलकुल किसी को मौत से बड़ी मौत देने के सामन है | हाल में दिल्ली में हुई इस घटना ने सबके जहन में एक तस्वीर और खौफ छोड दिया है, सभी इसके आक्रोश का एक हिस्सा बनते जा रहे है, फर्क है तो बस इतना की किसी के दिलो में ये आग एक दम सुलग गई तो कोई किसी के दिलो में चिंगारी से धुआ निकलते-निकलते ये आग रोशन हुई, मीडिया से बेखबर लोगो के लिए उनके कान और आपस की बाते इस सनसनी से उनको जोड़ते चली गई, कई अनजान लोगो की आपस में बातचीत या आफिस आते-जाते रहो में इसकी चर्चा, जिससे साफ़ पता चल रहा है की लोगो में इसका घुस्सा हमेशा ताजा रहेगा, उस लड़की के लिए नहीं तो शायद अपने परिवार की चिंता के लिए | मैं इस हादसे पर अपना कोई ठोस और मुहर लगाने वाला फैसला तो नहीं कहना चाहूँगा की “अपराधियों को फांसी” दे दो पर इतना जरुर कहूँगा की इनके लिए बतर से बतर सजा कम ही होगी | अब फ़ैसल हमारे हातः है क्या हम किसी धारवारिक के एपिसोद कि तरह इसे देखे और तालिय मरकर चुप हो जाये या ये वक्त है अपनी उस खामोषि और चुप्पी को तोडने का...???