आज मेरा वक्त कहां हैं?
कुछ आवाज़े आपकी रोज़ाना की जिन्दगी में ऐसे शामिल हो जाती हैं, कि व आपका वक्त बन जाती हैं। जिससे आप अपने दैनिक कामो को करते हैं।
ये आवाज़े अगर कभी शान्त हो जाये तो क्या होगा?
क्या कोई ऐसी आवाज़ हैं जो आपकी इस (वक्त की) आवाज़ की जगह ले लेती हों?
पता नही...
अगर ले लेती हैं तो दोनो को आप सोचते कैसे हो? दोनो में अपनी अपनी खासियत क्या हैं?
हाथो में अपने पौते का हाथ लिये आते ही वो बैठ गई और कहने लगी। मैं शशी गार्डन में रहती हुँ। मेरे घर के बगल में ही दो तीन फैक्ट्रीयाँ हैं। जहाँ से हमेशा आवाज़े आती रहती हैं। शायद ओरो के लिये परेशानी करती होगी मगर मेरे लिये तो मेरा वक्त हैं। मेरा तो हर काम इसी की मौहलत पर टीका होता हैं।
उसकी बातो में बाते मिलाती हुई उसकी सहेली भी बोल पड़ी। हाँ उसकी आवाज़ से इसे चाय जो मिल जाती हैं। अब आप सोचोगें वो कैसें? वो तो बस एक मुहावरा भर था। इससे उनके कहने का मतलब तो बस इतना ही था कि वो अपना बहुत सा काम इसके सहारे कर लेती हैं।
वो ये सब सुनकर कहने लगी। क्या करे उम्र भी हो गई हैं और दिखाई भी कम देता हैं। और अगर दिखाई भी देता तो पढ़ना लिखना भी बिल्कुल नही आता। मेरा वक्त तो बस ये फैक्ट्रीयां ही हैं। जिसकी आवाज़ से सुबह उठ जाती हुँ, जिसके लन्च टाइम में बचने वाली आवाज़ से खाना खाने का टाईम का पता लग जाता हैं जो 1:30 बजे बजती हैं। और एसी कई चीजो का पता भी चलता हैं। कभी शाम को चाय नही मिल पाती तो बहु से बोल भी पाती हुँ, कि क्या बात हैं 4:00 भी बज गये। आज चाय मिलेगीं या नही? अब तो फैक्ट्री का अर्लाम भी बज गया।
हाँ... हाँ...शायद बहु को तो ये फैक्ट्री बिल्कुल पसंद नही होगी।
पर जिस दिन ये फैक्ट्री मंगलवार को बन्द रहती हैं उस दिन तो मेरा टाईम, बेटाईम हो जाता हैं। उस दिन सोचती हुँ आज मेरा वक्त कहां हैं? उस दिन तो सारा टाईम खटीयां पर ही बीत जाता हैं। सौ कर उठने का भी कोई टाईम नही होता। खाना जब बहु दे देती हैं तभी खा लेती हुँ। लगता हैं उस दिन जैसे बहु की छुट्टि हो।
मैं तो बस यही सोचती हुँ कि मेरा ये वक्त कभी ना रुके। पर हफ्ते में एक दिन तो इसे रुकना ही होगा। आखिर क्यों ये मेरे लिये मेरी घड़ी बनकर हमेशा मेरे साथ होगी? लोगो के लिये शायद ये सिर्फ एक शोर हो। मगर मेरे लिये,शोर से आगे मेरा वक्त हैं। पता नही जब ये नही होगा तो मेरा क्या होगा... ?
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