LOW FLOOR VS OLD DTC BUS...
इस दौरान ...
इस दौरान ...
बस चलाने वाले अपनी मर्ज़ी के मालिक बन गये है, कभी बस नही होती रस्तो पर तो कभी एक ही बस इतनी आती है की पूछो मत, बसो मी भीड़ होने के बावजूद भी बसो को हर स्टैंड पर रोक-रोक कर और भरा जाता है, जिससे की लोग बाहर लटकते है और ड्राईवर को यह कहने का मौका मिल जाता है की बस आगे नही चलेगी जब तक दरवाजा बंद ना हो...
लेडिज अपनी तय सीट्स छौड़कर बाकी की सीट्स पर बैठ जाती है, जैसे उन्हे कोई लाभ मिलता हो ऐसा करके, जब उनके लिए सीट्स रीजर्व है तो उन्हे उसका इस्तेमाल करना चाहिए।
ए.सी बस का प्रॉजेक्ट देल्ही में इसलिए आया था की जो लोग परेशान होकर सफ़र नही करना चाहते वो इस बस में सब के साथ सफ़र कर सकते हैं, मगर आज भी लोग अपनी अलग कार का इस्तेमाल करते है जिससे रास्ते अभी भी जाम के हवाले हैं और ए.सी बस इतनी धीरे चलती हैं की रास्ते जाम कर देती हैं, मानो तेज चलने की या कहीं जल्दी पहुँचने की हमारी डिमांड ख़त्म सी होती जा रही है। कही जल्दी पहुँचना हैं या टाइम से पहुँचना तो घर से एक दो घंटा जल्दी चलो यही एक रास्ता हैं।
इन न्यू लो फ्लॉर बस ने स्टाइल तो दिया हैं मगर बस की गति छीन ली हैं। मेरा लाजपत नगर से खिचड़ीपुर पहुँचने में पहले जो समय 30 मिनिट का लगता था वही समय अब एक घंटे से उपर का हो गया हैं...
लो फ्लोर बसो मी इतनी बड़ी-बड़ी खिड़किया तो लगा दी गई है मगर हमेशा दम घुटने का आलम बना रहता है। आज भी पुरानी D.T.C बस न्यू लो फ्लोर बस से सफ़र के लिए अच्छी लगती है। हवादार बस और तेज रफ़्तार दोनो इसकी खूबी है। लो फ्लोर बस तो सरकार की बस वही नीति लगती है जो कहावत में भी है. दस बोलना और दो तोलना... यहाँ सरकार ने वही किया है देल्ही में, दस बोलकर दो तोलकर दे दिया...
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