Wednesday, September 14, 2011

अनजानी पहचान...

आज पापा अलमारी को खोल कर उसमे से कुछ खोजने और तलाश में थे । वो अलमारी को खोले हुये खड़े थे, और आंखो को किसी की खोज़ में व्यस्त किया हुआ था । कभी किसी चीज पर हाथ पढ़ता तो वो उस चीज़ को बाहर निकाल कर रख लेते या उनकी निगाहों के सामने जो चीज़ अडचने पैदा करने की कौशिश करती या आंखो की खोज़ की इस तपिश को कम करने की कौशिश करती, तो वो अपने हाथो से कलाईयो के जौर के साथ एक गैप बनाते हुए ओर अंडर झाकाने की कौशिश करती । कुछ मिलने पर उसे गौर से देखते और वापस रख देते । शायद उनकी खोज़ वो नहीं थी वो कुछ और था, जो खोज़ की इस तलब को बड़ा रहा था ।

कोई लिखा हुआ कागज मिलता तो आंखो की भौओ को चड़ाते हुए आंखो के ऊपर अपना धुंधला पढ़ा हुआ चस्मा अपनी आंखो पर छड़ा लेते । जिससे उनकी आंखो को शब्दो का आकार गाढ़ा और साफ़ नज़र आता । ये चस्मा उनकी आंखो पर कुछ बारीक पढ़ते हुये ही नज़र आता था । जिससे यह एहसास हो रहा था की कुछ बारीक शब्द बिना चसमे के उनकी आंखो में चुभ रहे हैं । जिनहे पढ़ने के लिए आज आंखो पर चस्मा हैं । पापा ने धीरे-धीरे सारी अलमारी खोज़ मारी, पर कुछ जगह अभी भी बाकी थी । अब उन्होने अपनी शादी की एल्बम पर हाथ रखा । और उसे भी बाहर निकाल रख दिया । उसे घर के सभी लोग देखने लगे । जिसके अंदर के सारे चेहरे मोटे तौर पर मेरे दिमाग में एक पुख्ता पहचान लिए हुए थे । उन्होने एक और एल्बम निकाली जिसे मैंने पहली बार देखा था । उन्होने उस एल्बम को साफ किया और अपने लॉकर में से एक पन्नी भी निकाली, जिसमे अपने काम के दस्तावेज़ वो संभाल कर रखते हैं । उन्होने दोनों चीजों को मजबूती से अपने हाथो में पकड़, दूसरे हाथ से अलमारी बंद कर दी और एक तरफ बैठ गये । उसमे भी कुछ ढूंढते हुए एक पुरानी सी ब्लैक एंड व्हाइट फोटो निकाल ली और एलबम को अपने पास में ही रख ली और अपने कागजो में एक कागज़ निकाल कर उस पर वो फोटो लगाने लगे ।

मेरी निगाहे उस एल्बम को देखने की जिज्ञासा लिए कई जाल बुनने पर मजबूर थी । मैंने पापा से पूछा पापा यह किसकी एल्बम हैं । आओर बिना उसे खोलने की इजाजद लिए एल्बम को खोलने लगा । पर पापा ने मुझे कुछ नहीं कहा । इस से यह तो जाहीर था की कुछ पर्सनल नहीं हैं, देखा जा सकता हैं । एल्बम खोलकर देखा तो कुछ नेगेटिव उसमे रखे थे ।उसे रख देने की बजाए दिलचस्पी उसे देखने में बढ़ गई । नेगेटिवे के हर एक हिस्से को अपने सर से ऊंचाई पर रखता और ट्यूब लाईट की रोशनी के दायरे के आगे उसे कर, चेहरो को पहचानने लगता । पर सब फिजूल था । क्योकि कुछ चेहरे तो पहचान में थे । पर ज्यादातर आकारो को धुंधले-पन के कारण समझ पाना मुश्किल था । उसको एक तरफ किया और एलबम को आगे देखने लगा । सभी तस्वीरे पुराने जमाने जैसी थी । ब्लैक एंड व्हाइट और निशचीत चाकौर आकार में । कई फोटो अपनी चमक के साथ-साथ अपने अपने ताजेपन को भी मिटाने लगी थी और कुछ तस्वीरे धुंधली आधे अधूरे हिस्सो में थी । में अपनी दादी के पास वो एल्बम उठाकर ले गया । और उन्हे फोटो दिखा-दिखा कर उन तस्वीरों को उनकी यादों में गाढ़ा करके अपने जहन में उतारने की कौशिश करने लगा । वो हर तस्वीरों को धियान से देखती और उस तस्वीर के बारे में मुझे बताती “किसकी तस्वीर हैं, उनका रिश्ता उस तस्वीर के शक्स से क्या हैं,मेरे कौन लगते हैं, कब की तस्वीर हैं, कोई यादगार लम्हा तस्वीर से जुड़ता हुआ ।” जो मेरे समझने के लिए शायद काफी था, पर जिज्ञासा बहुत थी और जानने की ।

इस प्रक्रिया के साथ काफी तस्वीरों का जमा पुराना आरकाइव मेरे दिमाग में उतार चुका था । जो मेरे लिए किसी को बताने के लिए काफी था । एल्बम में कुछ पुराने अखबारो की कटिंग मिली जिसे बड़ी हिफाजत से संभाल कर रखा हुआ था । दादी उन तुकददों को भी हाथो में उठाते हुये उँगलियो के इशारे से आंखो की पुतलियों को घुमाते हुये उसमे किसी शख्स की खोज़ करती । और अपनी खोज़ पूरी हो जाने पर मुझसे सवाल करती । इसमे से अपने दादा बता कौन हैं । उस तस्वीर में काफी सारे लोग थे जो एक ही पौशाक में खड़े थे । मेरी समझ न आने पर मैं बस अंदाज़ा लगाता और किसी भी शख्स पर उंगली टीका देता तो, वो अपने हाथो में एल्बम लेकर मुझे उनकी पहचान करवाती और उस तस्वीर के बारे में भी बताने लगती की ये तेरे दादा के स्टाफ की तस्वीर हैं जो अखबार में छपी थी । ऐसी कई तस्वीरे मिली जो की मेरे रिश्तेदारों की होते हुये भी मेरे लिए अंजान थी । वो अब इस प्रक्रिया को एक खेल की तरह मेरे साथ करती । किसी शख्स की खोज़ करने को कहती जिसमे कभी में जीतता तो कभी हार जाता पर उससे जुड़ता कैसा तो हमेशा उनके ही पास होता था । और न मिल पाने पर वो खुद ही अपने आप बताने लगती । अब एल्बम तो खतम हो चुकी थी पर अभी भी वो एल्बम के किसी पन्ने को बार-बार पलटती और तस्वीरों को देखकर कुछ सोचने लगती । ये सब मेरे बीच पल भर के लिए आया और मेरी आंखो में समा जाने वाली छवि छौड़ गया । दादा की जवानी कैसी थी । पापा का बचपन कैसा था । वो यादगार लम्हा जो कभी मेरे घरवालो के लिए अहम था । जिसकी पहचान के लिए कुछ छवियो को समेटा हुआ था । आंखे उस चीज को पढ़ चुकी थी जो मेरे लिए पुराना होते हुए भी नया जैसा ही था ।

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