आखरी पन्ना...
मेरी कोपी का वो आखिरी पन्ना जो कभी आखिरी नही । मेरा वो पन्ना कई तरह के शब्दो से हमेशा भरा रहता है । कभी मैं उस पन्ने पर अपने नाम को अलग–अलग तरिको दर्ज करता था । अपने नाम के हस्ताक्षर को सजाने की कोशिश एक अभ्यास करता रहता अपने हस्ताक्षर को ज़टिल रुप देने का या अपने स्कुल की अगले दिन की छुट्टी के लिए एक अवकाश पत्र लिख उसे कापी से जुदा कर लेता वो पन्ना मेरे लिए कभी आखिरी नही था । कभी दोसतो के साथ मिलकर उसमे चित्रकारी करता और दोस्त उस पन्ने को भी उसमे से फाड़ कर अपने पास रख लेते । कभी पिछले पन्नो पर चार पर्ची खेलते या कभी अपने खेलो को दर्ज करते आने वाले पेपरो की डेटशिट कोभी उसी पन्ने में जगह मिलती । एक बार मैने उस पन्ने को दोस्तो के लवज़ो से निकली शायरी से भी सजाया । जिसको भी कभी कुछ लिखना होता पिछे के पन्ने पर ही लिख देता जिसको कोपी में संजोय रखना मेरे लिए आसान नही था क्योंकि वो पन्ना आखिरी नही था । कभी किसि सब्जेक्ट की कोपी भुल जाता तो पिछले पन्ने में उस कोपी का काम कर लेता और उसे फाड़ कर अपने पास रख लेता । घर के राशन कीलिस्ट बनानी होती तोभी वो ही पन्ना काम आता जो कभी आखिरी नही था । कोपी का आकार तो सिमटता जाता पर उस पन्ने का आकार वही था जिसमे मैं हमेशा कई चीजे शामिल किया करता था उसमे कभी किसी चीज़ को दर्ज करने के लिए कमी नही थी क्योंकि वो पन्ना कभी आखिरी था ही नही । कोपी भरने पर भी उसमे एक ऐसे पन्ने की तलाश थी जो आखिरी हो ही नही ।दोस्तो के कुछ लिखने के लिए पन्ना या कोपी माँगने पर कभौ ये नही कहा ये पन्ना आखिरी है क्योंकि कही न कही कोई न कोई जगह मिल ही जाती । 240 पन्नो की कोपी कब140पन्नो में तबदील हो जातौ पता नही चलता । पर इतना कुछ होने के बाद भी वो पन्ना कभी आखिरी नही था । बस वो पन्ना जगह बदल लेता था ।
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