Wednesday, July 7, 2010


ड़ायरी
कितने लोग अपने जीवन में होने वाली घटनाओ किस्सो कहानियों, कविताओ, शेरो-शायरियो को अपने जीवन की यादो से एक पन्ने पर उतार देते है। पर क्यो? उन यादो किस्सो कहानियो को डायरी पर उतारना क्यो जरुरी हो जाता है? कई शक्स ऐसे भी होते है जो की वो जो बात लोगो से बाँट नही पाते वो इसे अपनी डायरी का हिस्सा बना लेते है । लोग कई तरह से अपनी ड़ायरीयो को संजोते है । कोई गानो से तो कोई केख कविताओ से कोई अपनी यादो से संजोते है तो कोई महीने का राशन पानी दर्ज करता है तो कोई शायरी के भारी भारी और अनौखे शब्दो से इसकी सुन्दरता पर चाँद तारे लगा देता है । पर अज एक अनोखी ड़ायरी मेरे पास है है तो उसमे भी शेरो-शायरी मगर एक अलग अन्दाज़ में ।

कितने लोग अपने जीवन में होने वाली घटनाओ किस्सो कहानियों, कविताओ, शेरो-शायरियो को अपने जीवन की यादो से एक पन्ने पर उतार के ड़ायरी को एक जीवन दे देते है । पर क्यूँ ? ड़ायरी शब्द सुनकर ही एक भारीपन का एहसास होता है पर क्यूँ अगर मैं ये कहुँ की मैने अपनी यादो को एक कोपी में उतारा है । तो शायद उस लिखे हुए को सुनने में भी किइ दिलचस्पी नही रहती पर अगर मैं कोपी कि जगह ड़ायरी को जोड़ देता हुँ तो शायद अपने आप में एक वजन लगता है एसा क्यूँ शायद ब़ायरी और कोपी मे कापी अन्तर हो जाता है । ड़ायरी एक भारी कलपनाओ की और मुझे आकर्षित कर ले जाती है । जहाँ कई किस्से-कहानियाँ, बरसो से लिखा गया आरकाईव, बहुत दिनो से कैद हुए हजारो-लाखो शब्द जो अपने वजन को दो परतो के बीच छुपा लेते है ड़ायरी को समझने के लिए काफी है या नही है ये पता नही ।

पर हाँ आज एक ऐसी ही ड़ायरी मेरे हाथ लगी संजय भाई सहाब कितने ही दिनो से अपने बीच हमेशा घुमने और दिल को छू जाने वाली शायरी को अपनी कलम की कभी मोटी कभी बारिक लिखाई से अपनी ड़ायरि के पन्नो में पिरोते है । कई ड़ायरिथा भर दी उनहोने शायद दो या तीन पर उनका कही पता नही की अब कहा किन कागजातो के साथ अपने खुबसुरत और बनावटी शब्दो के साथ कहा दफन हो गई है । कभी ढूंढने की कोशिश भी नही कि, पर हाँ जो उसकी नज़रो के सामने थी वो उसे अपने दोस्तो, रिश्तेदारों और भाईयों के साथ बैठकर पड़ता । मज़ा बहुत आता था उसे पड़ने में पर वो शायरी उनकी नही थी । बल्की उनकी ज़िन्दगी में रिजाना आने-जाने वाली शायरियों में से एक थी जो वो कभी दोस्तो के साथ लतिफा समझ कर सुना देता । पर लगता की अब वो इसे अपने और हमारे बीच सुनाकर उन्ही यादों को पुखता कर लेता या दोहरा लेता । अक्सर मुझे वो बाताया करता कि देख ये पड़ अच्छी है । मैं बोलता यार तु ही सुना दे मज़ा आएगा ।
वो अपने शायरी भरे अन्दाज़ में ...

" कभी दिल तो कभी शमा जला के रोए,
तेरी यादो को सीने से लगा के रोए ।
रात की गोद में जब सो गई दुनियाँ सारी ,
तो चाँद को सीने से लगा के रोए ।।

मै वाह-वाह कहकर चुप हो जाता और वो मेरी निगाहो को देखकर अपनी डायरी में लिखे दुसरे मज़ेदार शेरो-शायरी को तलाशने लगता पर कही न कही असकी आवाज़ में वो झलक ही जाता जो अपनी शायरी में वो कह गया था । और मुझे मालुम भी नही पड़ने दिया । मुझे लग रहा था कि शायद इसे अपना दर्द बाटने वाला चाहिए और मैं बोला अबे एक ही सुना के रह गया और नही सुनाएगा क्या । वो कहता रुक, कोई दिल छु जाने वाली शायरी या गज़ल मिल जाए तो अभी सुनाता हुँ । तो मैं कहता चल मैं सुनाता हुँ...
वो बोला ईरशाद-ईरशाद...

दो कदम का फासला अब सहा न जाएगा ,
यादों के सहारे अब रहा न जाएगा ।
हो जाओगे मजबूर हमारी चाहत में ,
की एक पल हमारे बजैर जिया न जाएगा ।।

वो वाह-वाह करता हुआ बोला यार तू यो बहुत बढियां शायर है । मैने कहा हाँ यार बस तेरे साथ रहते रहते बन गया । बस यूँ ही हसी नजाक में वो मुझे कई शायरी सुना देता और सुनाते-सुनाते हम बातो बातो मे नींद की आगोश में सौ जाते...।

1 comment: